६. लिंग

लिंग


"संज्ञा के जिस रूप से व्यक्ति या वस्तु की नर या मादा जाति का बोध हो, उसे व्याकरण में 'लिंग' कहते है।


लिंग के भेद

(1) पुलिंग :-

                   जिन संज्ञा शब्दों से पुरूष जाति का बोध होता है, उसे पुलिंग कहते है।


जैसे- कुत्ता, बालक, खटमल, पिता, राजा, घोड़ा, बन्दर, हंस, बकरा, लड़का,मकान, फूल, नाटक, लोहा, चश्मा, दुःख, लगाव, चित्र, पत्र, पात्र, मित्र, गोत्र, दमन, गमन, गगन, श्रवण, पोषण, शोषण, पालन, लालन, मलयज, जलज, उरोज, सतीत्व, कृत्य, लाघव, वीर्य, माधुर्य, कार्य, कर्म, प्रकार, प्रहार, विहार, प्रचार, सार, विस्तार, प्रसार, अध्याय, स्वाध्याय, उपहार, ह्रास, मास, लोभ, क्रोध, बोध, मोद, ग्रन्थ, नख, मुख, शिख, दुःख, सुख, शंख, तुषार, तुहिन, उत्तर, पश्र, मस्तक, आश्र्चर्य, नृत्य, काष्ट, छत्र, मेघ, कष्ट, प्रहर, सौभाग्य, अंकन, अंकुश, अंजन, अंचल, अन्तर्धान, अन्तस्तल, अम्बुज, अंश, अकाल, अक्षर, कल्याण, कवच, कायाकल्प, कलश, काव्य, कास, गज, गण, ग्राम, गृह, चन्द्र, चन्दन, क्षण, छन्द, अलंकार, सरोवर, परिमाण, परिमार्जन, संस्करण, संशोधन, परिवर्तन, परिशोध, परिशीलन, प्राणदान,वचन, मर्म, यवन, रविवार, सोमवार, मार्ग, राजयोग, रूप, रूपक, स्वदेश, राष्ट, प्रान्त, नगर, देश, सर्प, सागर, साधन, सार, तत्त्व, स्वर्ग, दण्ड, दोष, धन, नियम, पक्ष, पृष्ट, विधेयक, विनिमय, विनियोग, विभाग, विभाजन, विऱोध, विवाद, वाणिज्य, शासन, प्रवेश, अनुच्छेद, शिविर, वाद, अवमान, अनुमान, आकलन, निमन्त्रण, नियंत्रण, आमंत्रण,उद्भव, निबन्ध, नाटक, स्वास्थ्य, निगम, न्याय, समाज, विघटन, विसर्जन, विवाह, व्याख्यान, धर्म, उपकरण, आक्रमण, श्रम,बहुमत, निर्माण, सन्देश, ज्ञापक, आभार, आवास, छात्रावास, अपराध, प्रभाव, लोक, विराम, विक्रम, न्याय, संघ, संकल्प इत्यादि



(2) स्त्रीलिंग :- 

                    जिस संज्ञा शब्द से स्त्री जाति का बोध होता है, उसे स्त्रीलिंग कहते है।

जैसे- माता, रानी, घोड़ी, कुतिया, बंदरिया, हंसिनी, लड़की, बकरी,सूई, कुर्सी, गर्दन,लज्जा, बनावट, दया, माया, कृपा, लज्जा, क्षमा, शोभा, सभा, प्रार्थना, वेदना, समवेदना, प्रस्तावना, रचना, घटना, अवस्था, नम्रता, सुन्दरता, प्रभुता, जड़ता, महिमा, गरिमा, कालिमा, लालिमा, ईष्र्या, भाषा, अभिलाषा, आशा, निराशा, पूर्णिमा, अरुणिमा, काया, कला, चपला, इच्छा, अनुज्ञा, आज्ञा, आराधना, उपासना, याचना, रक्षा, संहिता, आजीविका, घोषणा, परीक्षा, गवेषणा, नगरपालिका, नागरिकता, योग्यता, सीमा, स्थापना, संस्था, सहायता,मान्यता, व्याख्या, शिक्षा, समता, सम्पदा, संविदा, सूचना, सेवा, सेना, विज्ञप्ति, अनुमति, अभियुक्ति, अभिव्यक्ति, उपलब्धि, विधि, क्षति,पूर्ति, विकृति, जाति, निधि, सिद्धि, समिति, नियुक्ति, निवृत्ति, रीति, शक्ति, प्रतिकृति, कृति, प्रतिभूति, प्रतिलिपि, अनुभूति, युक्ति, धृति, हानि, स्थिति, परिस्थिति, विमति, वृत्ति, आवृत्ति, शान्ति, सन्धि, समिति, सम्पत्ति, सुसंगति, कटि, छवि, रुचि, अग्नि, केलि, नदी, नारी, मण्डली, लक्ष्मी, शताब्दी, श्री, कुण्डली, कुण्डलिनी, कौमुदी, गोष्ठी, धात्री, मृत्यु, आयु, वस्तु, रज्जु, रेणु, वायु इत्यादि। 



  पुल्लिंग की पहचान

(1) कुछ संज्ञाएँ हमेशा पुल्लिंग रहती है-

खटमल, भेड़या, खरगोश, चीता, मच्छर, पक्षी, आदि।

(2)समूहवाचक संज्ञा- मण्डल, समाज, दल, समूह, वर्ग आदि।

(3) भारी और बेडौल वस्तुअों- जूता, रस्सा, लोटा ,पहाड़ आदि।

(4) दिनों के नाम- सोमवार, मंगलवार, बुधवार, गुरुवार, शुक्रवार, शनिवार, रविवार आदि।

(5) महीनो के नाम- फरवरी, मार्च, चैत, वैशाख आदि। (अपवाद- जनवरी, मई, जुलाई-स्त्रीलिंग)

(6) पर्वतों के नाम- हिमालय, विन्द्याचल, सतपुड़ा, आल्प्स, यूराल, कंचनजंगा, एवरेस्ट, फूजीयामा आदि।

(7) देशों के नाम- भारत, चीन, इरान, अमेरिका आदि।

(8) नक्षत्रों, व ग्रहों के नाम- सूर्य, चन्द्र, राहू, शनि, आकाश, बृहस्पति, बुध आदि।

(अपवाद- पृथ्वी-स्त्रीलिंग)

(9) धातुओं- सोना, तांबा, पीतल, लोहा, आदि।

(10) वृक्षों, फलो के नाम- अमरुद, केला, शीशम, पीपल, देवदार, चिनार, बरगद, अशोक, पलाश, आम आदि।

(11) अनाजों के नाम- गेहूँ, बाजरा, चना, जौ आदि। (अपवाद- मक्की, ज्वार, अरहर, मूँग-स्त्रीलिंग)

(12) रत्नों के नाम- नीलम, पुखराज, मूँगा, माणिक्य, पन्ना, मोती, हीरा आदि।

(13) फूलों के नाम- गेंदा, मोतिया, कमल, गुलाब आदि।

(14) देशों और नगरों के नाम- दिल्ली, लन्दन, चीन, रूस, भारत आदि।

(15) द्रव पदार्थो के नाम- शरबत, दही, दूध, पानी, तेल, कोयला, पेट्रोल, घी आदि।

(अपवाद- चाय, कॉफी, लस्सी, चटनी- स्त्रीलिंग)

(16) समय- घंटा, पल, क्षण, मिनट, सेकेंड आदि।

(17) द्वीप- अंडमान-निकोबार, जावा, क्यूबा, न्यू फाउंडलैंड आदि।

(18) सागर- हिंद महासागर, प्रशांत महासागर, अरब सागर आदि।

(19) वर्णमाला के अक्षर- क्, ख्, ग्, घ्, त्, थ्, अ, आ, उ, ऊ आदि। (अपवाद- इ, ई, ऋ- स्त्रीलिंग)

(20) शरीर के अंग- हाथ, पैर, गला, अँगूठा, कान, सिर, मस्तक, मुँह, घुटना, ह्रदय, दाँत आदि।

(अपवाद- जीभ, आँख, नाक, उँगलियाँ-स्त्रीलिंग)

(21) आकारान्त संज्ञायें- गुस्सा, चश्मा, पैसा, छाता आदि।

(22) 'दान, खाना, वाला' आदि से अंत होने वाले अधिकतर शब्द पुल्लिंग होते हैं; जैसे- खानदान, पीकदान, दवाखाना, जेलखाना, दूधवाला आदि।

(23) अ, आ, आव, पा, पन, क, त्व, आवा तथा औड़ा से अंत होने वाली संज्ञाएँ पुल्लिंग होती हैं :

अ- खेल, रेल, बाग, हार, यंत्र आदि।

आ- लोटा, मोटा, गोटा, घोड़ा, हीरा आदि।

आव- पुलाव, दुराव, बहाव, फैलाव, झुकाव आदि।

पा- बुढ़ापा, मोटापा, पुजापा आदि।

पन- लड़कपन, अपनापन, बचपन, सीधापन आदि।

क- लेखक, गायक, बालक, नायक आदि।

त्व- ममत्व, पुरुषत्व, स्त्रीत्व, मनुष्यत्व आदि।

आवा- भुलावा, छलावा, दिखावा, चढ़ावा आदि।

औड़ा- पकौड़ा, हथौड़ा आदि।

(24) मच्छर, गैंडा, कौआ, भालू, तोता, गीदड़, जिराफ, खरगोश, जेबरा आदि सदैव पुल्लिंग होते हैं।

(25) कुछ प्राणिवाचक शब्द, जो सदैव पुरुष जाति का बोध कराते हैं; जैसे- बालक, गीदड़, कौआ, कवि, साधु आदि।

स्त्रीलिंग की पहचान

(1) स्त्रीलिंग शब्दों के अंतर्गत नक्षत्र, नदी, बोली, भाषा, तिथि, भोजन आदि के नाम आते हैं; जैसे-

(i) कुछ संज्ञाएँ हमेशा स्त्रीलिंग रहती है- मक्खी ,कोयल, मछली, तितली, मैना आदि।

(ii) समूहवाचक संज्ञायें- भीड़, कमेटी, सेना, सभा, कक्षा आदि।

(iii) प्राणिवाचक संज्ञा- धाय, सन्तान, सौतन आदि।

(iv) छोटी और सुन्दर वस्तुअों के नाम- जूती, रस्सी, लुटिया, पहाड़ी आदि।

(v) नक्षत्र- अश्विनी, रेवती, मृगशिरा, चित्रा, भरणी, रोहिणी आदि।

(vi) बोली- मेवाती, ब्रज, खड़ी बोली, बुंदेली आदि।

(vii) नदियों के नाम- रावी, कावेरी, कृष्णा, यमुना, सतलुज, रावी, व्यास, गोदावरी, झेलम, गंगा आदि।

(viii) भाषाओं व लिपियों के नाम- देवनागरी, अंग्रेजी, हिंदी, फ्रांसीसी, अरबी, फारसी, जर्मन, बंगाली आदि।

(ix) पुस्तकों के नाम- कुरान, रामायण, गीता आदि।

(x) तिथियों के नाम- पूर्णिमा, अमावस्था, एकादशी, चतुर्थी, प्रथमा आदि।

(xi) आहारों के नाम- सब्जी, दाल, कचौरी, पूरी, रोटी आदि।

अपवाद- हलुआ, अचार, रायता आदि।

(xii) ईकारान्त वाले शब्द- नानी, बेटी, मामी, भाभी आदि।

नोट- हिन्दी भाषा में वाक्य रचना में क्रिया का रूप लिंग पर ही निर्भर करता है। यदि कर्ता पुल्लिंग है तो क्रिया रूप भी पुल्लिंग होता है तथा यदि कर्ता स्त्रीलिंग है तो क्रिया का रूप भी स्त्रीलिंग होता है।

 (2) आ, ता, आई, आवट, इया, आहट आदि प्रत्यय लगाकर भी स्त्रीलिंग शब्द बनते हैं; जैसे-

आ- भाषा, कविता, प्रजा, दया, विद्या आदि।

ता- गीता, ममता, लता, संगीता, माता, सुंदरता, मधुरता आदि।

आई- सगाई, मिठाई, धुनाई, पिटाई, धुलाई आदि।

आवट- सजावट, बनावट, लिखावट, थकावट आदि।

इया- कुटिया, बुढ़िया, चिड़िया, बिंदिया, डिबिया आदि।

आहट- चिल्लाहट, घबराहट, चिकनाहट, कड़वाहट आदि।

या- छाया, माया, काया आदि।

आस- खटास, मिठास, प्यास आदि

(3) शरीर के कुछ अंगों के नाम भी स्त्रीलिंग होते हैं; जैसे-

आँख, नाक, जीभ, पलकें, ठोड़ी आदि।

(4) कुछ आभूषण और परिधान भी स्त्रीलिंग होते है; जैसे-

साड़ी, सलवार, चुन्नी, धोती, टोपी, पैंट, कमीज, पगड़ी, माला, चूड़ी, बिंदी, कंघी, नथ, अँगूठी, हँसुली आदि।

(5) कुछ मसाले आदि भी स्त्रीलिंग के अंतर्गत आते हैं; जैसे-

दालचीनी, लौंग, हल्दी, मिर्च, धनिया, इलायची, अजवायन, सौंफ, चिरौंजी, चीनी, कलौंजी, चाय, कॉफी आदि।

विशेष :

कुछ शब्द ऐसे हैं, जो स्त्रीलिंग और पुल्लिंग दोनों रूपों में प्रयोग किए जाते है; जैसे-

(1) राष्ट्रपति, उपराष्ट्रपति, प्रधानमंत्री, मुख्यमंत्री, चित्रकार, पत्रकार, प्रबंधक, सभापति, वकील, डॉक्टर, सेक्रेटरी, गवर्नर, लेक्चर, प्रोफेसर आदि।

(2) बर्फ, मेहमान, शिशु, दोस्त, मित्र आदि।

इन शब्दों के लिंग का परिचय योजक-चिह्न, क्रिया अथवा विशेषण से मिलता है।

यहाँ हम देखें, कैसे इस तरह के शब्दों के लिंग को पहचाना जा सकता है :


(i) भारत की राष्ट्रपति श्रीमती प्रतिभा देवी सिंह पाटिल हैं।

(ii) एम० एफ० हुसैन भारत के प्रसिद्ध चित्रकार हैं।

(iii) मेरी मित्र कॉलेज में लेक्चरर है।

(iv) हिमालय पर जमी बर्फ पिघल रही हैं।

(v) दुख में साथ देने वाला ही सच्चा दोस्त कहलाता है।

(vi) मेरे पिताजी राष्ट्रपति के सेक्रेटरी हैं।

लिंग-निर्णय

तत्सम (संस्कृत) शब्दों का लिंग-निर्णय

संस्कृत पुंलिंग शब्द

पं० कामताप्रसाद गुरु ने संस्कृत शब्दों को पहचानने के निम्नलिखित नियम बताये है-

(अ) जिन संज्ञाओं के अन्त में 'त्र' होता है। जैसे- चित्र, क्षेत्र, पात्र, नेत्र, चरित्र, शस्त्र इत्यादि।

(आ) 'नान्त' संज्ञाएँ। जैसे- पालन, पोषण, दमन, वचन, नयन, गमन, हरण इत्यादि।

अपवाद- 'पवन' उभयलिंग है।

(इ) 'ज'-प्रत्ययान्त संज्ञाएँ। जैसे- जलज,स्वेदज, पिण्डज, सरोज इत्यादि।

(ई) जिन भाववाचक संज्ञाओं के अन्त में त्व, त्य, व, य होता है। जैसे- सतीत्व, बहूत्व, नृत्य,

कृत्य, लाघव, गौरव, माधुर्य इत्यादि।

(उ) जिन शब्दों के अन्त में 'आर', 'आय', 'वा', 'आस' हो। जैसे- विकार, विस्तार, संसार, अध्याय, उपाय,

समुदाय, उल्लास, विकास, ह्रास इत्यादि।

अपवाद- सहाय (उभयलिंग), आय (स्त्रीलिंग)।

(ऊ) 'अ'-प्रत्ययान्त संज्ञाएँ। जैसे- क्रोध, मोह, पाक, त्याग, दोष, स्पर्श इत्यादि।

अपवाद- जय (स्त्रीलिंग), विनय (उभयलिंग) आदि।

(ऋ) 'त'-प्रत्ययान्त संज्ञाएँ। जैसे- चरित, गणित, फलित, मत, गीत, स्वागत इत्यादि।

(ए) जिनके अन्त में 'ख' होता है। जैसे- नख, मुख, सुख, दुःख, लेख, मख, शख इत्यादि।

संस्कृत स्त्रीलिंग शब्द

पं० कामताप्रसाद गुरु ने संस्कृत स्त्रीलिंग शब्दों को पहचानने के निम्नलिखित नियम बताये है-

(अ) आकारान्त संज्ञाएँ। जैसे- दया, माया, कृपा, लज्जा, क्षमा, शोभा इत्यादि।

(आ) नाकारान्त संज्ञाएँ। जैसे- प्रार्थना, वेदना, प्रस्तावना, रचना, घटना इत्यादि।

(इ) उकारान्त संज्ञाएँ। जैसे- वायु, रेणु, रज्जु, जानु, मृत्यु, आयु, वस्तु, धातु इत्यादि।

अपवाद- मधु, अश्रु, तालु, मेरु, हेतु, सेतु इत्यादि।

(ई) जिनके अन्त में 'ति' वा 'नि' हो। जैसे- गति, मति, रीति, हानि, ग्लानि, योनि, बुद्धि,

ऋद्धि, सिद्धि (सिध् +ति=सिद्धि) इत्यादि।

(उ) 'ता'-प्रत्ययान्त भाववाचक संज्ञाएँ। जैसे- न्रमता, लघुता, सुन्दरता, प्रभुता, जड़ता इत्यादि।

(ऊ) इकारान्त संज्ञाएँ। जैसे- निधि, विधि, परिधि, राशि, अग्नि, छवि, केलि, रूचि इत्यादि।

अपवाद- वारि, जलधि, पाणि, गिरि, अद्रि, आदि, बलि इत्यादि।

(ऋ) 'इमा'- प्रत्ययान्त शब्द। जैसे- महिमा, गरिमा, कालिमा, लालिमा इत्यादि।

तत्सम पुंलिंग शब्द

चित्र, पत्र, पात्र, मित्र, गोत्र, दमन, गमन, गगन, श्रवण, पोषण, शोषण, पालन, लालन, मलयज, जलज, उरोज, सतीत्व, कृत्य, लाघव, वीर्य, माधुर्य, कार्य, कर्म, प्रकार, प्रहार, विहार, प्रचार, सार, विस्तार, प्रसार, अध्याय, स्वाध्याय, उपहार, ह्रास, मास, लोभ, क्रोध, बोध, मोद, ग्रन्थ, नख, मुख, शिख, दुःख, सुख, शंख, तुषार, तुहिन, उत्तर, पश्र, मस्तक, आश्र्चर्य, नृत्य, काष्ट, छत्र, मेघ, कष्ट, प्रहर, सौभाग्य, अंकन, अंकुश, अंजन, अंचल, अन्तर्धान, अन्तस्तल, अम्बुज, अंश, अकाल, अक्षर, कल्याण, कवच, कायाकल्प, कलश, काव्य, कास, गज, गण, ग्राम, गृह, चन्द्र, चन्दन, क्षण, छन्द, अलंकार, सरोवर, परिमाण, परिमार्जन, संस्करण, संशोधन, परिवर्तन, परिशोध, परिशीलन, प्राणदान,

वचन, मर्म, यवन, रविवार, सोमवार, मार्ग, राजयोग, रूप, रूपक, स्वदेश, राष्ट, प्रान्त, नगर, देश, सर्प, सागर, साधन, सार, तत्त्व, स्वर्ग, दण्ड, दोष, धन, नियम, पक्ष, पृष्ट, विधेयक, विनिमय, विनियोग, विभाग, विभाजन, विऱोध, विवाद, वाणिज्य, शासन, प्रवेश, अनुच्छेद, शिविर, वाद, अवमान, अनुमान, आकलन, निमन्त्रण, नियंत्रण, आमंत्रण,उद्भव, निबन्ध, नाटक, स्वास्थ्य, निगम, न्याय, समाज, विघटन, विसर्जन, विवाह, व्याख्यान, धर्म, उपकरण, आक्रमण, श्रम,बहुमत, निर्माण, सन्देश, ज्ञापक, आभार, आवास, छात्रावास, अपराध, प्रभाव, लोक, विराम, विक्रम, न्याय, संघ, संकल्प इत्यादि।

तत्सम स्त्रीलिंग शब्द

दया, माया, कृपा, लज्जा, क्षमा, शोभा, सभा, प्रार्थना, वेदना, समवेदना, प्रस्तावना, रचना, घटना, अवस्था, नम्रता, सुन्दरता, प्रभुता, जड़ता, महिमा, गरिमा, कालिमा, लालिमा, ईष्र्या, भाषा, अभिलाषा, आशा, निराशा, पूर्णिमा, अरुणिमा, काया, कला, चपला, इच्छा, अनुज्ञा, आज्ञा, आराधना, उपासना, याचना, रक्षा, संहिता, आजीविका, घोषणा, परीक्षा, गवेषणा, नगरपालिका, नागरिकता, योग्यता, सीमा, स्थापना, संस्था, सहायता,मान्यता, व्याख्या, शिक्षा, समता, सम्पदा, संविदा, सूचना, सेवा, सेना, विज्ञप्ति, अनुमति, अभियुक्ति, अभिव्यक्ति, उपलब्धि, विधि, क्षति,

पूर्ति, विकृति, जाति, निधि, सिद्धि, समिति, नियुक्ति, निवृत्ति, रीति, शक्ति, प्रतिकृति, कृति, प्रतिभूति, प्रतिलिपि, अनुभूति, युक्ति, धृति, हानि, स्थिति, परिस्थिति, विमति, वृत्ति, आवृत्ति, शान्ति, सन्धि, समिति, सम्पत्ति, सुसंगति, कटि, छवि, रुचि, अग्नि, केलि, नदी, नारी, मण्डली, लक्ष्मी, शताब्दी, श्री, कुण्डली, कुण्डलिनी, कौमुदी, गोष्ठी, धात्री, मृत्यु, आयु, वस्तु, रज्जु, रेणु, वायु इत्यादि। 



1)पुल्लिंग से स्त्रीलिंग करने के लिए ई का प्रयोग कर दिया जाता है| जैसे :- 

  • चाचा = चाची 
  • दादा = दादी 
  • लड़का = लड़की 
  • नर = नारी 
  • बंदर = बंदरी 
  • पोता = पोती 
  • घोड़ा = घोड़ी 
  • नाला = नाली 
  • बकरा = बकरी 
  • दास = दासी 
  • कबूतर = कबूतरी 
  • नाना = नानी 
  • देव = देवी 
  • कूत्ता = कूत्ती 
  • चूहा = चुहि 
  • देव-देवी                                      
  • पुत्र -पुत्री
  • ब्राह्मण-ब्राह्मणी                            
  • मेंढक-मेंढकी
  • गोप-गोपी     
  •     नाना-नानी                                  
  •  बेटा-बेटी
  • लङका-लङकी                               
  •  रस्सा-रस्सी
  • घोङा-घोङी                                  
  •  चाचा-चाची                   

2)जब पुल्लिंग शब्दों के अन्त में अ, आ अथवा वा आदि शब्दों का प्रयोग होता है, तब स्त्रीलिंग शब्दों के अन्त में अ, आ अथवा वा के स्थान पर इया लगाकर उनका निर्माण किया जाता है| उदाहरण के तौर पर :- 

  • खाट = खटिया 
  • बंदर = बंदरिया
  • बूढ़ा = बुढ़िया 
  • लोटा = लुटिया 

3)कुछ पुल्लिंग शब्दों में “इका” प्रत्यय जोड़कर, उन्हे स्त्रीलिंग बना दिया जाता है| उदाहरण के तौर पर :- 

  • बालक = बालिका 
  • संपादक = संपादिका 
  • पाठक = पाठिका 
  • चालक = चालिका 
  • पालक = पालिका 
  • पत्र = पत्रिका

4)कभी कभार, पुल्लिंग शब्द काफी ज्यादा जटिल होते हैं इस कारण उन्हे स्त्रीलिंग में बदलने के लिए मादा लगाना पड़ता है| उदाहरण के तौर पर :- 

  • मक्खी = नर मक्खी 
  • मच्छर = मादा मच्छर 
  • भालू = मादा भालू 
  • मैना = नर मैना 
  • कौआ = मादा कौआ 
  • कोयल = नर कोयल 
  • भेढ़ = नर भेढ़ 
  • कछुआ = नर कछुआ 
  • तोता = मादा तोता 
  • गिलहरी = नर गिलहरी 
  • उल्लू = मादा उल्लू 
  • मगरमच्छ = मादा मगरमच्छ 
  • चील = नर चील 
  • खटमल = मादा खटमल 

5)कुछ स्त्रीलिंग शब्द, पुल्लिंग शब्दों से बिल्कुल ही अलग होते हैं, उनके निर्माण में किसी भी प्रकार के नियम का प्रयोग नहीं किया जाता| उदाहरण के तौर पर :- 

  • भाई = बहन 
  • सम्राट = सम्राज्ञी 
  • बेटा = बहु 
  • पति = पत्नी 
  • पिता = माता 
  • पुरुष = स्त्री 
  • बिलाव = बिल्ली 
  • वर = वधू 
  • मर्द = औरत 
  • राजा = रानी 
  • फूफा = बुआ 
  • बैल = गाय 

6)कुछ पुरुष शब्दों के अन्त में आनी प्रत्यय लगाकर, उन्हे स्त्रीलिंग बना दिया जाता है| उदाहरण के तौर पर :- 

  • ठाकुर = ठकूरानी 
  • सेठ = सेठानी 
  • देवर = देवरानी 
  • इंद्र = इंद्राणी 
  • पंडित = पंडितानी 
  • नौकर = नौकरानी 
  • चौधरी = चौधरानी 
  • मेहतर = मेहतरानी 

7)कई सारे पुल्लिंग शब्दों के अन्त में “इन” प्रत्यय का प्रयोग कर उन्हे स्त्रीलिंग बनाया जाता है| उदाहरण के तौर पर :- 

  • कुम्हार = कुम्हारिन
  • बाघ = बाघिन 
  • लुहार = लूहारीन 
  • माली = मालिन 
  • दर्जी = दर्जीन 
  • सुनार = सुनारिन 
  • सांप = सांपीन 

8)पुल्लिंग शब्दो के अन्त में “आइन” प्रत्यय जोड़कर, स्त्रीलिंग शब्द बनाने जाते हैं| उदाहरण के तौर पर :- 

  • चौधरी = चौधराईन 
  • पंडित = पंडिताइन 
  • बाबू = बबूआईन 
  • गुरु = गुरुआईन 
  • हलवाई = हलवाईन 

9)पुल्लिंग शब्दों के अन्त में जब ता का प्रयोग किया जाता है तब स्त्रीलिंग शब्दो के अन्त में त्रि का प्रयोग करके, स्त्रीलिंग बनाया जाता है| उदाहरण के तौर पर :- 

  • धाता = धात्री 
  • रचयिता = रचयित्री 
  • वक्ता = वक्त्री
  • अभिनेता = अभीनेत्री 
  • नेता = नेत्री 
  • कवि = कवियत्री 
  • विधाता = विधात्री 

10)पुल्लिंग शब्दों के अन्त में कई बार “नी” प्रत्यय का प्रयोग करके, उन्हे स्त्रीलिंग बनाया जाता है| उदाहरण के तौर पर :- 

  • हाथी = हथिनी 
  • शेर = शेरनी
  • चाँद = चांदनी 
  • सिंह = सिंहनी 
  • मोर = मोरनी 
  • चोर = चोरनी 
  • हंस = हँसनी 
  • भील = भीलनी 
  • ऊंट = ऊंटनी 
  • हिंदू = हिंदूनी 

11)पुल्लिंग शब्दों के अन्त में “इनी” प्रत्यय का प्रयोग करके, उन्हे स्त्रीलिंग बना दिया जाता है| उदाहरण के तौर पर :- 

  • तपस्वी = तपस्वनी 
  • सुहास = सुहासनी 
  • मनस्वी = मनस्वनी 
  • अभिमान = अभिमानिनी 

12)कई बार पुल्लिंग शब्दों के अन्त में “ति” प्रत्यय का प्रयोग करके उन्हे स्त्रीलिंग बनाया जाता है| उदाहरण के तौर पर :- 

  • भगवान = भगवती 
  • श्रीमान = श्रीमति 
  • पुत्रवान = पुत्रवती 
  • आयुष्मान = आयुष्मति 
  • बुद्धिमान = बुद्धिमति 

13)पुल्लिंग शब्द जो अक्सर अ पर खत्म होते हैं, उनके अन्त में आ लगाकर उन्हे स्त्रीलिंग कर दिया जाता है| उदाहरण के तौर पर :- 

  

  • सुत = सूता 
  • प्रिय = प्रिया 
  • तनुज = तनुजा 
  • पुष्प = पुष्पा 
  • श्याम = श्यामा 
  • आत्मज = आत्मजा 
  • भेड़ = भेड़ा 
  • पूज्य = पूज्या 
  • चंचल = चंचला 
  • वेदांत = वेदांता 
  • भैंस = भैंसा 
  • मौसी = मौसा 
  • जीजी = जीजा 
  • छात्र-छात्रा 
  •  वृद्ध-वृद्धा
  • पूज्य-पूज्या                               
  • भवदीय-भवदीया
  • सुत-सुता                                  
  • अनुज-अनुजा


योगेन्द्रनाथ मिश्रा जी के लेख
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सभी जिज्ञासुओं के लिए - हिंदी में शब्दों के लिंग की पहचान के नियम :
अब सवाल उठता है कि हिंदी में शब्दों के लिंग की पहचान कैसे होती है कि कौन-सा संज्ञा शब्द किस लिंग में है?
हिंदी में ऐसा कोई नियम या उपाय नहीं है, जिससे उसके सारे शब्दों के लिंग की पहचान सरलता से हो सके। इस मामले में अंग्रेजी भाषा के नियम बहुत ही सरल हैं। अंग्रेजी में प्राणीवाचक सभी संज्ञाएँ पुल्लिंग/स्त्रीलिंग में होती हैं तथा अप्राणीवाचक अर्थात् निर्जीव पदार्थों की बोधक संज्ञाएँ नपुंसकलिंग में होती हैं। प्राणीवाचक में भी जिस संज्ञा शब्द से भौतिक जगत के पुरुष (नर) प्राणी का बोध होता है, उसे पुल्लिंग (मैस्कुलाइन जेंडर) कहा जाता है, जिस संज्ञा शब्द से भौतिक जगत के स्त्री (मादा) प्राणी का बोध होता है, वह स्त्रीलिंग (फेमिनाइन जेंडर) कहा जाता है। जो प्राणीवाचक शब्द पुरुष-स्त्री दोनों के लिए प्रयुक्त होते हैं, उन्हें उभयलिंग (कॉमन जेंडर) कहा जाता है। ऐसे में अंग्रेजी में किसी प्रकार की दुविधा की गुंजाईश नहीं रहती। वहाँ शब्दों के लिंग के निर्धारण या पहचान एकमात्र आधार है अर्थ; यानी भौतिक जगत या मनोजगत में विद्यमान पदार्थ।
परंतु हिंदी में ऐसी स्थिति नहीं है। हिंदी में ऐसा कोई नियम नहीं है, जिससे उसके सभी संज्ञा शब्दों का लिंग-निर्धारण सरलता से किया जा सके। 
हालाँकि पंडित कामताप्रलाद गुरु से लेकर आज तक के व्याकरण लेखकों ने शब्दों के लिंग की पहचान के लिए कुछ नियम सुझाए हैं। वैसे उन्हें नियम नहीं कहा जा सकता। सिर्फ सौ-पचास शब्दों को अर्थ के आधार पर वर्गीकृत रूप में सूचीबद्ध किया गया है। जैसे - पहाड़ों के नाम पुल्लिंग/नदियों के नाम स्त्रीलिंग/अनाजों के नाम पुल्लिंग/रत्नों के नाम पुल्लिंग/शरीर के अंगों के नाम पुल्लिंग/धातुओं के नाम पुल्लिंग/पेड़ों के नाम पुल्लिंग/दिनों के नाम पुल्लिंग/महीनों के नाम पुल्लिंग/ग्रहों के नाम पुल्लिंग/तिथियों के नाम स्त्रीलिंग/व्यंजनों (खाद्य पदार्थ) के नाम स्त्रीलिंग ...। साथ ही बड़ी संख्या में उनके अपवाद भी दिए गए हैं।
फिर भी, कुछ सुनिश्चित आधोरों पर थोड़े नियम अवश्य बनाए जा सकते हैं, जिनसे बहुत सारे शब्दों के लिंग की पहचान हो सरलता से हो सकती है -
1. शब्द के अर्थ के आधार पर।
2. शब्द की आकृति के आधार पर। 
3. शब्द की रचना के आधार पर।
4. बहुचवन बनाने वाले प्रत्ययों के अधार पर
1. शब्द के अर्थ के आधार पर :
सामान्यतः प्राणीवाचक शब्दों के लिंग की पहचान उनके अर्थ के आधार पर की जा सकती है।
एक सामान्य नियम के अनुसार, भौतिक जगत में, जिन प्राणीवाचक शब्दों से पुरुष (नर) का बोध होता है, उन्हें पुल्लिंग तथा जिन शब्दों से स्त्री (मादा) का बोध होता है, उन्हें स्त्रीलिंग कहा जाता है। जैसे :
पुल्लिंग : पुरुष, आदमी, घोड़ा, गदहा, मोर, लड़का, पुत्र, बेटा, हाथी, शेर, हिरन, कुत्ता आदि।
स्त्रीलिंग : स्त्री, औरत, घोड़ी, गदही, शेरनी, लड़की, बेटी, हथिनी, कुतिया, मोरनी, पुत्री आदि।
परंतु यह नियम उन्हीं प्राणीवाचक शब्दों पर लागू पड़ता है, जो जोड़े या युग्म के रूप में भाषा में मौजूद हैं। जैसे - पुरुष-स्त्री, नर-नारी, घोड़ा-घोड़ी, शेर-शेरनी, लड़का-लड़की, बेटा-बेटी मोर-मोरनी, कुत्ता-कुतिया, चूहा-चुहिया, माता-पिता, पति-पत्नी ... आदि।
परंतु हिन्दी में थोड़े ऐसे भी प्राणीवाचक शब्द मौजूद हैं, जो युग्म या जोड़े के रूप में नहीं हैं। एक ही शब्द से पुरुष-स्त्री (नर-मादा) का बोध बोता है। एक ही शब्द दोनों के लिए प्रयुक्त होता है। जैसे - कौआ/कौवा (पु.), कोयल (स्त्री.),  गीध/गिद्ध (पु.), चील (स्त्री.), उल्लू (पु.), गिलहरी (स्त्री.), छिपकली (स्त्री.), मगर/मगरमच्छ (पु.), मछली (स्त्री.), जोंक (स्त्री.), खरगोश (पु.), भालू (पु.), भेड़िया (स्त्री.), चीता (पु.), मच्छर (पु.), खटमल (पु.), जूँ (स्त्री.) मक्खी (स्त्री.), चींटी (स्त्री.), चींटा (पु.), मैना (स्त्री.), तीतर (), बटेर, तितली, केंचुआ ...।
ये सभी शब्द (तथा और भी) प्राणीवाचक शब्द हैं। परंतु ये सभी एकल शब्द हैं। जोड़े के रूप में नहीं हैं। अर्थात् एक प्रकार के प्राणी के पुरुष-स्त्री (नर-मादा) के लिए अलग-अलग शब्द नहीं हैं। एक ही शब्द से नर-मादा दोनों का बोध होता है। ऐसे में अर्थ के आधार पर इसके लिंग की पहचान नहीं हो सकती। जैसे ‘शेर’ शब्द इसलिए पुल्लिंग है, क्योंकि पुरुष (नर) प्राणी का बोध कराता है और ‘शेरनी’ शब्द इसलिए स्त्रीलिंग है, क्योंकि वह स्त्री (मादा) प्राणी का बोध करता है, वैसी स्थिति ‘चील’, ‘उल्लू’ आदि शब्दों के साथ नहीं है। कारण कि एक ही शब्द से पुरुष-स्त्री दोनों का बोध होता है। ‘चील’ शब्द क्यों स्त्रीलिंग है, इसका जवाब अर्थ के आधार पर नहीं मिल सकता। जैसे ‘शेर शब्द क्यों पुल्लिंग है’ का जवाब मिलता है।
आशय यह कि ऐसे शब्दों के लिंग की पहचान का आधार प्रयोग है।
ऐसे शब्दों को पं. कामताप्रसागद गुरु ने ‘नित्य पुल्लिंग’ तथा ‘नित्य स्त्रीलिंग’ कहा है। लेकिन यह धारणा सही नहीं है। कारण कि जो युग्म शब्द हैं, वे भी ‘नित्य पुल्लिंग’ तथा ‘नित्य स्त्रीलिंग’ हैं। गुरु जी के अनुसार जैसे ‘उल्लू’ शब्द नित्य पुल्लिंग है, वैसे ही ‘लड़का’ शब्द भी तो नित्य पुल्लिंग है। क्या ‘लड़का’ शब्द का प्रयोग कभी आप स्त्रीलिंग में करते हैं?
इन एकल शब्दों में कुछ ऐसे भी हैं, जो युग्म होने का भ्रम पैदा करते हैं। जैसे - चींटा-चींटी। व्याकरण की पुस्तकों में ‘चींटा-चींटी’ के बीच परस्पर पुल्लिंग-स्त्रीलिंग का संबंध बताया गया है। यानी ‘चींटा’ का स्त्रीलिंग ‘चींटी’। हम सभी जानते हैं कि ये दोनों अलग-अलग प्रजातियाँ हैं। दोनों के बीच पुल्लिंग-स्त्रीलिंग का संबंध कैसे हो सकता है! न तो ‘चींटा’ शब्द ‘चींटी’ का पुल्लिंग है, न ‘चींटी’ शब्द ‘चींटा’ शब्द का स्त्रीलिंग है।
यह भूल एक बड़े कोशकार (अरविंद कुमार : अरविंद सहज समांतर कोश) ने भी की है। ‘चींटा’ का अर्थ उन्होंने ‘बड़ी चींटी’ लिखा है तथा ‘चींटी’ का अर्थ ‘छोटा चींटा’ लिखा है।
2. शब्द की आकृति के आधार पर :
1. एक सामान्य नियम के अनुसार हिंदी के ज्यादातर ‘तद्भव’ तथा ‘देशज’ आकारांत शब्द पुल्लिंग होते हैं तथा ईकारांत ‘तद्भव’ और ‘देशज’ शब्द स्त्रीलिंग होते हैं।
पुल्लिंग : लड़का, घोड़ा, लोटा, थैला, नाला, गुस्सा, पत्ता, कपड़ा, चमड़ा, उजाला, बछड़ा, रुपया, खजाना, गाना, तराना, काफिला, इलाका, लिफाफा, किनारा, तमाशा, किराया, इरादा, आटा, काँटा, झंडा, डंडा, कूड़ा, कोड़ा, धोखा, झूला, आइना, किला, कबीला, कस्बा, दीया, भौंरा, कंधा, कंघा, दाना, इक्का, धक्का, मुक्का, ताँगा, तबला, कारखाना, मुर्गा, फंदा, धंधा, जंघा, पहिया, जाँघिया, दरवाजा, छाता, नाका, डाका, कचरा, कोयला, टोकरा, कुहरा, घंटा, भाड़ा, तौलिया, गोला, बगुला, मेला, ठेला, रेला, प्याला, मसाला आदि।
स्त्रीलिंग : लड़की, लकड़ी, छड़ी, नाली, गाली, प्याली, रोटी, लौकी, गोभी, घोड़ी, मुर्गी, थैली, कहानी, कोठी, खिड़की, कुर्सी, लाठी, साड़ी, मिठाई, पत्ती, कंघी, टोकरी, गोली, घंटी, चौकी, बीमारी, आँधी, झोंपड़ी, नौकरी, लड़ाई, पडाई, लिखाई, टोपी, इमली, उँगली, सरदी, गरमी, सब्जी, मर्जी, दीवाली, होली, सीढ़ी, पीढ़ी, खाई, कमाई, गाड़ी, घड़ी, जड़ू, बूटी, खाँसी, खुशी, फाँसी, चूड़ी, पूड़ी, खिचड़ी, कढ़ी, पूँजू, मूली, जिंदगी, छुरी, मजबूरी, कलई, बरफी, बीड़ी, चाभी, दाढ़ी, ककड़ी, बकरी आदि।
परंतु इनके कुछ अपवाद भी हैं :
(1) पानी, घी, जी, दही, मही, हाथी, साथी, मोती - ये सभी ईकारांत होते हुए भी पुल्लिंग हैं।
(2) हवा, दवा, सजा, बला, दगा, दफा - ये सभी आकारांत होते हुए भी स्त्रीलिंग हैं।
2. तद्भव ऊकारांत शब्द पुल्लिंग  होते हैं :
आलू, भालू, डाकू, आँसू, गेहूँ, कोल्हू, बालू, डमरू, तमाकू, चाकू, घुँघरू, लट्टू, तराजू आदि।
2. अकारांत तत्सम शब्द सामान्यतः पुल्लिंग होते हैं। जैसे :
चित्र, मित्र, अंकन, अंकुश, काव्य, कलश, मुख, सुख, शंख, बोध, क्रोध, शोध, प्रबोध, एकांत, वचन, कवच, रूप, रंग, सूर्य, चंद्र, साधन, विनियोग, प्रयोग, संयोग, सरोवर, अपराध, प्रभाव, संसार, विश्व, पालन, पोषण, नयन, दमन, विकार, उपा, विकास आदि।
3. आकारांत तथा इकारांत तत्सम शब्द हिंदी में सामान्यतः स्त्रीलिंग में प्रयुक्त होते हैं। जैसे :
सीता, गीता, रमा, लता, दशा, माया, प्रार्थना, कृपा, लज्जा, घटना, रचना, भावना, प्रस्तावना, वेदना, क्षमा, शोभा, सभा, कविता, आशा, निराशा, कन्या, भाषा, कथा, व्यथा, मर्यादा, शिक्षा, दीक्षा, भिक्षा, रक्षा, प्रजा, श्रद्धा, आज्ञा, अनुज्ञा, हिंसा, ज्वाला, मात्रा, यात्रा, समस्या, मिथ्या, सूचना, अर्चना, उषा, चेष्टा, क्रिया, महिमा, गरिमा, विद्या, प्रिया, इच्छा, माला, योजना, सेना, वेश्या, माता, तपस्या आदि।
रति, मति, गति, प्रति, ऋद्धि, सिद्धि, प्रसिद्धि, बुद्धि, शुद्धि, निधि, विधि, उक्ति, सूक्ति, मुक्ति, युक्ति, शक्ति, दृद्धि, सृष्टि, प्रविष्टि, पुष्टि, उन्नति, प्रगति, लिपि आदि।
अपवाद : दाता, विधाता, नेता, अभिनेता, प्रणेता, ब्रह्मा, राजा, कर्ता, भोक्ता, प्रयोक्ता, विधि (ब्रह्मा), ऋषि, कपि, शशि, रवि, मुनि, पति, गिरि आदि।
4. अकारांत तद्भव, देशज तथा विदेशी शब्द पुल्लिंग तथा स्त्रीलिंग दोनों में बड़ी संख्या में हैं -
पुल्लिंग : अरमान, अनार, अनाज, अंधड़, अंगूर, आँचल, इंतजार, इन्साफ, इलजाम, कपूर, कंबल, कफन, कड़ाह, कब्ज, करवट, काजल, काठ, काँच, गज, गजट, कोट, गुलाब, गिलास, गोंद, गेंद, चंगुल, चक्कर, चप्पल, चम्मच, जेठ, जासूस, जमाव, जेल, खेल, झूमर, डग, तेल, तेवर, थन, थल, दफ्तर, दरबार, देहात, वजन, सिर, होटल आदि।
स्त्रीलिंग : अकड़, अक्ल, अदालत, अदावत, अफवाह, अपील, अफीम, अरहर, आग, आफत, ईमद, इज्जत, उड़ान, कटार, कतार, किस्मत, कसम, कसरत, कोख, कोयल, खैरात, खोट, खोज, खोह, गजल, गागर, जलन, जमावट, झंझट, झील, ट्रेन, डाल, तबियत, तोप, दहाड़, दीवार, दहशत, दरार, पंचायत, नींद, पंगत, नफरत, पतवार, बरसात, मैल, बैठक, लकीर  आदि।
विशेष : उकारांत तत्सम संज्ञाएँ पुल्लिंग तथा स्त्रीलिंग दोनों में होती हैं। इसलिए किसी एक के लिए नियम-निर्देश नहीं किया जा सकता है :
पुल्लिंग : मधु, अश्रु, तालु, साधु, मेरु, सेतु, साधु, हेतु।
स्त्रीलिंग : वायु, वस्तु, ऋतु, मृत्यु, आयु, धातु।
3. शब्द की रचना में प्रयुक्त प्रत्ययों के आधार पर :
1. ‘-ता’ प्रत्यय से बनने वाली भाववाचक संज्ञाएँ सदा स्त्रीलिंग में होती हैं :
सुंदरता, कुरूपता, लघुता, दीर्घता, विशालता, कटुता, मृदुता, महत्ता, अधिकता, कृत्रिमता, नवीनता, पुरातनता, प्राचीनता, आधुनिकता, पवित्रता, नीचता, महानता, सरसता, नीरसता, उष्णता, शीतलता, कृशता, निर्बलता, सबलता, उच्चता आदि।
2. ‘-त्व’ प्रत्यय के योग से बनने वाली भाववाचक संज्ञाएँ सदा पुल्लिंग में होती हैं :
समत्व, लघुत्व, गुरुत्व, देवत्व, दीर्घत्व, महत्त्व, कवित्व, सतीत्व, सत्त्व, पुरुषत्व, स्त्रीत्व, पशुत्व, व्यक्तित्व, बंधुत्व, अपनत्व आदि।
3. ‘-आई’ प्रत्यय से बने शब्द (भाववाचव संज्ञाएँ) सदैव स्त्रीलिंग में होते हैं :
लिखाई, पढ़ाई, कताई, बुनाई, कटाई, चढ़ाई, उतराई, सिलाई, कमाई, पिसाई, लंबाई, चौड़ाई, मोटाई, ऊँचाई, गहराई, भलाई, बुराई आदि।
4. ‘-नी’, ‘-इन’, ‘-आनी,  ‘-आइन’ प्रत्यों से बनी संज्ञाएँ स्त्रीलिंग में होती हैं :
शेरनी, मोरनी, चोरनी, भीलनी, ऊँटनी, डाकिनी, धोबिन, तेलिन, चमारिन, जमादारिन, लुहारिन, सुनारिन, साँपिन, देवरानी, जेठानी, सेठानी, पंडितानी, नौकरानी, ठकुराइन, पंडिताइन, मास्टराइन, डाक्टराइन आदि।
5. ‘-आवट’ तथा ‘-आहट’ प्रत्ययों से बनी भाववाचक संज्ञाएँ स्त्रीलिंग में होती हैं :
बनावट, जमावट, मिलावट, गिरावट, लिखावट, थकावट, घबराहट, अकुलाहट, सनसनाहट, गुर्राहट आदि।
6. ‘-पा’ तथा ‘-पन’ प्रत्ययों से बनी भाववाचक संज्ञाएँ पुल्लिंग में होती हैं :
बुढ़ापा, मोटापा, रंडापा, बचपन, लड़कपन, छुटपन आदि।
4. बहुचवन बनाने वाले प्रत्ययों के अधार पर :
हिन्दी में बहुवचन के पाँच प्रत्यय हैं - -ए, -आँ, -एँ, -ओं तथा -ओ। इनमें ‘-ओ’ संबोधन में आता है। ‘-ओं’ पुल्लिंग तथा स्त्रीलिंग दोनों प्रकार के शब्दों के साथ जुड़ता है। बाकी के तीन प्रत्ययों में से ‘-ए’ आकारांत पुल्लिंग शब्दों के साथ जुड़ता है तथा ‘आँ’ और ‘-एँ’ स्त्रीलिंग शब्दों के साथ जुड़ते हैं।
अर्थात् ‘-ए’, ‘-आँ’ और ‘-एँ’ प्रत्ययों से बने बहुवचन रूपों से भी किसी शब्द के लिंग की पहचान की जा कसकती है।
जैसे - गमले, लोटे, नाले, थैले, पौधे, कपड़े, पत्ते जैसे शब्द गमला, लोटा, नाला, थैला, पौधा, कपड़ा, पत्ता शब्दों के बहुवचन रूप हैं, जो ‘-ए’ प्रत्यय से बने हैं। बहुवचन बनाने के लिए ‘-ए’ प्रत्यय सिर्फ पुल्लिंग शब्दों के साथ लगता है। ऐसे में यह निश्चय हो जाता है कि ये सारे शब्द पुल्लिंग हैं।
ऐसे ही गालियाँ, प्यालियाँ, रोटियाँ, लौकियाँ, थैलियाँ, प्रार्थनाएँ, घटनाएँ, रचनाएँ, भावनाएँ, निधियाँ, विधियाँ, उक्तियाँ, सूक्तियाँ, युक्तियाँ, शक्तियाँ जैसे शब्द गाली, प्याली, रोटी, लौकी, थैली, प्रार्थना, घटना, रचना, भावना, निधि, विधि, उक्ति, सूक्ति, युक्ति, शक्ति जैसे शब्दों के बहुवचन रूप हैं, जिनके साथ स्त्रीलिंग बनाने वाले ‘-आँ’ तथा ‘-एँ’ प्रत्यय लगे हैं।
व्याकरण की पुस्तकों में और भी बहुत सारे नियम दिए गए हैं। परंतु साथ-साथ उनके उतने ही अपवाद भी दिए गए हैं। ऐसी स्थिति में उन नियमों का कोई विशेष उपयोग नहीं रह जाता।
सच तो यही है कि हिंदी में निरंतर अभ्यास, अनुभव तथा शब्दकोश की सहायता से ही लिंग की पहचान की जा सकती है। ऊपर गिनाए गए नियमों से बहुत थोड़ी मदद मिलेगी।