१३. समास

समास

समास का अर्थ ‘संक्षिप्त’ या ‘संछेप’ होता है । समास का तात्पर्य है ‘संक्षिप्तीकरण’। दो या दो से अधिक शब्दों से मिलकर बने हुए एक नवीन एवं सार्थक शब्द को समास कहते हैं।

कम से कम दो शब्दों में अधिक से अधिक अर्थ प्रकट करना समास का लक्ष्य होता है।

  हिन्दी व्याकरण में समास का शाब्दिक अर्थ होता है छोटा रूप; जब दो या दो से अधिक शब्दों से मिलकर जो नया और छोटा शब्द बनता है उस शब्द को हिन्दी में समास कहते हैं।
दूसरे शब्दों में कहा जाए तो समास वह क्रिया है, जिसके द्वारा हिन्दी में कम-से-कम शब्दों मे अधिक-से-अधिक अर्थ प्रकट किया जाता है।

समास रचना में दो पद होते हैं , पहले पद को
‘पूर्वपद
‘ कहा जाता है और दूसरे पद को ‘
उत्तरपद
‘ कहा जाता है। इन दोनों से जो नया शब्द बनता है वो समस्त पद कहलाता है। जैसे :-

  • रसोई के लिए घर = रसोईघर
  • हाथ के लिए कड़ी = हथकड़ी
  • नील और कमल = नीलकमल
  • रजा का पुत्र = राजपुत्र

सामासिक शब्द

समास के नियमों से निर्मित शब्द सामासिक शब्द कहलाता है। इसे समस्तपद भी कहते हैं। समास होने के बाद विभक्तियों के चिह्न (परसर्ग) लुप्त हो जाते हैं।

  • जैसे-राजपुत्र।

समास-विग्रह

सामासिक शब्दों के बीच के संबंधों को स्पष्ट करना समास-विग्रह कहलाता है।विग्रह के पश्चात सामासिक शब्दों का लोप हो जाताहै

  • जैसे- राज+पुत्र-राजा का पुत्र।

पूर्वपद और उत्तरपद

  • समास में दो पद (शब्द) होते हैं। पहले पद को पूर्वपद और दूसरे पद को उत्तरपद कहते हैं। जैसे-गंगाजल। इसमें गंगा पूर्वपद और जल उत्तरपद है।

समास के भेद

  1. अव्ययीभाव समास
  2. तत्पुरुष समास
  3. कर्मधारय समास
  4. द्विगु समास
  5. द्वन्द समास
  6. बहुव्रीहि समास

प्रयोग की दृष्टि से समास के भेद-

  1. संयोगमूलक समास
  2. आश्रयमूलक समास
  3.  वर्णनमूलक समास 

पदों की प्रधानता के आधार पर वर्गीकरण- 

  1. पूर्वपद प्रधान - अव्ययीभाव 
  2. उत्तरपद प्रधान - तत्पुरुष, कर्मधारय, द्विगु 
  3. दोनों पद प्रधान - द्वंद्व 
  4. दोनों पद अप्रधान - बहुव्रीहि (इसमें कोई तीसरा अर्थ प्रधान होता है)

अव्ययीभाव समास

जिस समास का पूर्व पद प्रधान हो, और वह अव्यय हो उसे अव्ययीभाव समास कहते हैं। जैसे - यथामति (मति के अनुसार), आमरण (मृत्यु तक) इनमें यथा और आ अव्यय हैं। जहां एक ही शब्द की बार बार आवृत्ति हो, अव्ययीभाव समास होता है ।

इसमें प्रथम पद अव्यय होता है और उसका अर्थ प्रधान होता है उसे अव्ययीभाव समास कहते हैं। इसमें अव्यय पद का प्रारूप लिंग, वचन, कारक, में नहीं बदलता है वो हमेशा एक जैसा रहता है।
या
दूसरे शब्दों में कहा जाये तो यदि एक शब्द की पुनरावृत्ति हो और दोनों शब्द मिलकर अव्यय की तरह प्रयोग हों वहाँ पर अव्ययीभाव समास होता है संस्कृत में उपसर्ग युक्त पद भी अव्ययीभाव समास ही माने जाते हैं।

जैसे - दिनोंदिन, रातोंरात, घर घर, हाथों-हाथ आदि।

अव्ययीभाव समास के कुछ उदाहरण

  • अकारण  – बिना कारण के
  • अनु + रूप   = अनुरूप
  • अनुरूप     – रूप के अनुसार
  • अनुकूल   – मन के अनुसार
  • अभूतपूर्व  –  जो पहले नहीं हुआ
  • आ + जन्म   = आजन्म
  • आजन्म   – जन्म से लेकर
  • आमरण - मरण तक
  • आमरण   –  मृत्यु तक
  • आजीवन - जीवन-भर
  • खूबसूरत - अच्छी सूरत वाली
  • निडर - डर के बिना
  • निस्संदेह - संदेह के बिना
  • निर्भय   – बिना भय के
  • निर्विवाद   – बिना विवाद के
  • निर्विकार  – बिना विकार के
  • पेट + भर   = भरपेट
  • प्रतिवर्ष - हर वर्ष
  • प्रतिदिन = प्रत्येक दिन
  • प्रति + दिन  = प्रतिदिन
  • प्रतिवर्ष =हर वर्ष
  • प्रति + कूल  = प्रतिकूल
  • प्रतिदिन - प्रत्येक दिन
  • प्रतिपल  – हर पल
  • बेशक - शक के बिना
  • भरपेट- पेट भरकर
  • यथाक्रम = क्रम के अनुसार
  • यथानियम = नियम के अनुसार
  • यथासमय  – समय के अनुसार
  • यथासाध्य = जितना साधा जा सके
  • धडाधड = धड-धड की आवाज के साथ
  • घर-घर = प्रत्येक घर
  • रातों रात = रात ही रात में
  • आमरण = म्रत्यु तक
  • यथाकाम = इच्छानुसार
  • यथासामर्थ्य - सामर्थ्य के अनुसार
  • यथाशक्ति - शक्ति के अनुसार
  • यथाविधि- विधि के अनुसार
  • यथाक्रम - क्रम के अनुसार
  • यथास्थान  – स्थान के अनुसार
  • यथाशीघ्र  – शीघ्रता से
  • यथा + संभव   = यथासंभव
  • रातोंरात - रात ही रात में
  • हररोज़ - रोज़-रोज़
  • हाथोंहाथ - हाथ ही हाथ में


अव्ययी समास की पहचान - इसमें समस्त पद अव्यय बन जाता है अर्थात समास लगाने के बाद उसका रूप कभी नहीं बदलता है। इसके साथ विभक्ति चिह्न भी नहीं लगता। जैसे - ऊपर के समस्त शब्द है।परक अव्ययीभाव समास जिस समास का पहला पद(पूर्व पद) प्रधान हो और वह अव्यय हो उसे अव्ययीभाव समास कहते हैं। उदाहरण: निडर = डर के बिना (इसमें नि अव्यय है) अव्ययीभाव समास में तीन प्रकार के पद आते हैं:- 1. उपसर्गों से बने पद (जिनमे उपसर्ग विशेषण न हो):- आ, निर्, प्रति, निस्, भर, खुश, बे, ला, यथा उपसर्गों से बने पद अव्ययीभाव समास होते है। उदाहरण: आजीवन (आ+जीवन) = जीवन पर्यन्त निर्दोष (निर्+दोष) = दोष रहित प्रतिदिन (प्रति+दिन) = प्रत्येक दिन बेघर (बे+घर) = बिना घर के लावारिस (ला+वारिस) = बिना वारिस के यथाशक्ति (यथा+शक्ति) = शक्ति के अनुसार 2. यदि एक ही शब्द दो बार आये :- उदाहरण: घर-घर = घर के बाद घर नगर-नगर = नगर के बाद नगर रोज-रोज = हर रोज 3. एक जैसे दो शब्दों के मध्य बिना संधि नियम के कोई मात्रा या व्यंजन आये:- उदाहरण: हाथोंहाथ = हाथ ही हाथ में दिनोदिन = दिन ही दिन में बागोबाग = बाग ही बाग में


तत्पुरुष समास

इस समास में दूसरा पद प्रधान होता है। यह कारक से जुदा समास होता है। इसमें ज्ञातव्य – विग्रह में जो कारक प्रकट होता है उसी कारक वाला वो समास होता है। इसे बनाने में दो पदों के बीच कारक चिन्हों का लोप हो जाता है उसे तत्पुरुष समास कहते हैं।

तत्पुरुष समास के उदाहरण

  • देश के लिए भक्ति = देशभक्ति
  • राजा का पुत्र = राजपुत्र
  • शर से आहत = शराहत
  • राह के लिए खर्च = राहखर्च
  • तुलसी द्वारा कृत = तुलसीदासकृत
  • राजा का महल = राजमहल

तत्पुरुष समास के भेद

वैसे तो तत्पुरुष समास के ८ भेद होते हैं किन्तु विग्रह करने की वजह से कर्ता और सम्बोधन
दो भेदों को लुप्त
रखा गया है। इसलिए विभक्तियों के अनुसार तत्पुरुष समास के ६ भेद होते हैं।

  1. कर्म तत्पुरुष (द्वितीया कारक चिन्ह) (गिरहकट - गिरह को काटने वाला)
  2. करण तत्पुरुष (मनचाहा - मन से चाहा)
  3. संप्रदान तत्पुरुष (रसोईघर - रसोई के लिए घर)
  4. अपादान तत्पुरुष (देशनिकाला - देश से निकाला)
  5. संबंध तत्पुरुष (गंगाजल - गंगा का जल)
  6. अधिकरण तत्पुरुष (नगरवास - नगर में वास)

समानाधिकरण तत्पुरुष समास (कर्मधारय समास)

जिस तत्पुरुष समास के समस्त होनेवाले पद समानाधिकरण हों, अर्थात विशेष्य-विशेषण-भाव को प्राप्त हों, कर्ताकारक के हों और लिंग-वचन में समान हों, वहाँ '
कर्मधारय तत्पुरुष समास
' होता है।

व्यधिकरण तत्पुरुष समास

जिस तत्पुरुष समास में प्रथम पद तथा द्वतीय पद दोनों भिन्न-भिन्न विभक्तियों में हो, उसे व्यधिकरण तत्पुरुष समास कहते हैं। उदाहरणतया- राज्ञ: पुरुष: - राजपुरुष: में प्रथम पद
राज्ञ:
 षष्ठी विभक्ति में है तथा द्वतीय पद
पुरुष:
 में प्रथमा विभक्ति है। इस प्रकार दोनों पदों में भिन्न-भिन्न विभक्तियाँ होने से
व्यधिकरण तत्पुरुष समास
 हुआ। ये ६ प्रकार का होता है -

  1. कर्म तत्पुरुष समास
  2. करण तत्पुरुष समास
  3. सम्प्रदान तत्पुरुष समास
  4. अपादान तत्पुरुष समास
  5. सम्बन्ध तत्पुरुष समास
  6. अधिकरण तत्पुरुष समास

कर्म तत्पुरुष समास

इसमें दो पदों के बीच में कर्मकारक छिपा हुआ होता है। कर्मकारक का चिन्ह ‘को’ होता है। को’ को कर्मकारक की विभक्ति भी कहा जाता है। उसे कर्म तत्पुरुष समास कहते हैं।

कर्म तत्पुरुष समास के उदाहरण

  • कठफोड़वा – कांठ को फ़ोड़ने वाला
  • कुंभकार    – कुंभ को बनाने वाला
  • गृहागत – गृह को आगत
  • ग्रामगत = ग्राम को गया हुआ
  • गिरिधर  – गिरी को धारण करने वाला
  • माखनचोर =माखन को चुराने वाला
  • मुंहतोड़ = मुंह को तोड़ने वाला
  • स्वर्गप्राप्त = स्वर्ग को प्राप्त
  • देशगत = देश को गया हुआ
  • जनप्रिय = जन को प्रिय
  • मरणासन्न = मरण को आसन्न
  • मनोहर  – मन को हरने वाला
  • माखनचोर  – माखन को चुराने वाला
  • मुंहतोड़    – मुंह को तोड़ने वाला
  • यशप्राप्त  – यश को प्राप्त
  • रथचालक = रथ को चलने वाला
  • वनगमन =वन को गमन
  • शत्रुघ्न   – शत्रु को मारने वाला
  • सर्वभक्षी  – सब का भक्षण करने वाला

करण तत्पुरुष समास

जहाँ पर पहले पद में करण कारक का बोध होता है। इसमें दो पदों के बीच करण कारक छिपा होता है । करण कारक का चिन्ह य विभक्ति "
के द्वारा"
 और '
से'
 होता है। उसे करण तत्पुरुष कहते हैं।

करण तत्पुरुष समास के उदाहरण:

  • अकाल पीड़ित  – अकाल से पीड़ित
  • अंधकार युक्त  – अंधकार से युक्त
  • आँखोंदेखी = आँखों से देखी
  • कर्मवीर  – कर्म से वीर
  • करुणा पूर्ण  – करुणा से पूर्ण
  • गुणयुक्त  – गुणों से युक्त
  • जलाभिषेक – जल से अभिषेक
  • ज्वरग्रस्त =ज्वर से ग्रस्त
  • तुलसीकृत – तुलसी द्वारा रचित
  • धनहीन = धन से हीन
  • पर्णकुटीर – पर्ण से बनी कुटीर
  • पददलित  – पद से दलित
  • बाणाहत = बाण से आहत
  • भुखमरी = भूख से मरी
  • भयाकुल = भय से आकुल
  • मनचाहा = मन से चाहा
  • मदांध =मद से अँधा
  • रक्तरंजित  – रक्त से रंजीत
  • रसभरा =रस से भरा
  • रोगातुर  –  रोग से आतुर
  • रोगग्रस्त  – रोग से ग्रस्त
  • शोकग्रस्त = शोक से ग्रस्त
  • स्वरचित =स्व द्वारा रचित
  • सूररचित  – सूर द्वारा रचित


सम्प्रदान तत्पुरुष समास

इसमें दो पदों के बीच सम्प्रदान कारक छिपा होता है। सम्प्रदान कारक का चिन्ह या विभक्ति "
के लिए"
 होती है। उसे सम्प्रदान तत्पुरुष समास कहते हैं।

सम्प्रदान तत्पुरुष समास के उदाहरण

  • गुरुदक्षिणा = गुरु के लिए दक्षिणा
  • गौशाला = गौ के लिए शाला
  • डाकगाड़ी = डाक के लिए गाड़ी
  • देशभक्ति = देश के लिए भक्ति
  • देवालय = देव के लिए आलय
  • धर्मशाला   – धर्म के लिए शाला
  • परीक्षा भवन – परीक्षा के लिए भवन
  • पुस्तकालय – पुस्तक के लिए आलय
  • प्रयोगशाला = प्रयोग के लिए शाला
  • यज्ञशाला = यज्ञ के लिए शाला
  • युद्धभूमि – युद्ध के लिए भूमि
  • रसोईघर = रसोई के लिए घर
  • राहखर्च – राह के लिए खर्च
  • विद्यालय =विद्या के लिए आलय
  • विधानसभा  – विधान के लिए सभा
  • विश्रामगृह = विश्राम के लिए गृह
  • सभाभवन = सभा के लिए भवन
  • सत्याग्रह  – सत्य के लिए आग्रह
  • स्नानघर = स्नान के लिए घर
  • हथकड़ी  = हाथ के लिए कड़ी


अपादान तत्पुरुष समास

इसमें दो पदों के बीच में अपादान कारक छिपा होता है। अपादान कारक का चिन्ह (
से
) या विभक्ति '
से अलग'
 होता है। उसे अपादान तत्पुरुष समास कहते हैं।

अपादान तत्पुरुष समास के उदाहरण :


  • अन्नहीन – अन्न से हीन
  • ऋणमुक्त  – ऋण से मुक्त
  • कर्महीन – कर्म से हीन
  • कामचोर = काम से जी चुराने वाला
  • गुणहीन – गुण से हीन
  • जातिभ्रष्ट – जाति से भ्रष्ट
  • जन्मांध  – जन्म से अंधा
  • जन्मरोगी = जन्म से रोगी
  • जलहीन – जल से हीन
  • दूरागत =दूर से आगत
  • देशनिकाला = देश से निकाला
  • धनहीन  – धन से हीन
  • नेत्रहीन = नेत्र से हीन
  • पापमुक्त = पाप से मुक्त
  • पथभ्रष्ट = पथ से भ्रष्ट
  • पदच्युत =पद से च्युत
  • फलहीन  – फल से हीन
  • भयभीत  – भय से डरा हुआ
  • रणविमुख = रण से विमुख
  • रोगमुक्त = रोग से मुक्त
  • वनरहित – वन  से रहित
  • स्वादरहित – स्वाद से रहित


सम्बन्ध तत्पुरुष समास

इसमें दो पदों के बीच में सम्बन्ध कारक छिपा होता है। सम्बन्ध कारक
के
चिन्ह या विभक्ति "
का, के, की
" होती हैं। उसे सम्बन्ध तत्पुरुष समास कहते हैं।

सम्बन्ध तत्पुरुष समास के उदाहरण

  • आमवृक्ष = आम का वृक्ष
  • आनंदाश्रम – आनंद का आश्रम
  • कन्यादान  – कन्या का दान
  • कार्यकर्ता  – कार्य का करता
  • गृहस्वामी – गृह का स्वामी
  • गोपाल   – गो का पालक
  • गंगाजल =गंगा का जल
  • चरित्रहीन  – चरित्र से हीन
  • छात्रावास  – छात्रा       वास
  • जलयान  – जल का यान
  • दुर्वादल =दुर्व का दल
  • देवपूजा = देव की पूजा
  • देशरक्षा = देश की रक्षा
  • जलधारा = जल की धारा
  • सुखयोग = सुख का योग
  • पराधीन  – पर के अधीन
  • मूर्तिपूजा = मूर्ति की पूजा
  • राजपुत्र = राजा का पुत्र
  • राजकुमारी = राज की कुमारी
  • राजनीति = राजा की नीति
  • राजाज्ञा  – राजा की आज्ञा
  • राजकुमार – राजा का कुमार
  • लोकतंत्र = लोक का तंत्र
  • विद्याभ्यास  – विद्या अभ्यास
  • विद्यासागर   – विद्या का सागर
  • शिवालय = शिव का आलय
  • सीमारेखा = सीमा की रेखा
  • सेनापति – सेना का पति
  • श्रधकण = श्रधा के कण


अधिकरण तत्पुरुष समास

इसमें दो पदों के बीच अधिकरण कारक छिपा होता है। अधिकरण कारक का चिन्ह या विभक्ति ‘ में ‘, ‘पर’ होता है। उसे अधिकरण तत्पुरुष समास कहते हैं।

अधिकरण तत्पुरुष समास के उदाहरण

  • आचारनिपुण = आचार में निपुण
  • आत्मविश्वास = आत्मा पर विश्वास
  • आत्मनिर्भर    – आत्म पर निर्भर
  • आनन्दमग्न = आनन्द में मग्न
  • आपबीती =आप पर बीती
  • ईस्वरभक्ति = ईस्वर में भक्ति
  • कलाकुशल = कला में कुशल
  • कलाश्रेष्ठ  – कला में श्रेष्ठ
  • कलाप्रवीण   – कला में प्रवीण
  • कविश्रेष्ठ  – कवियों में श्रेष्ठ
  • कार्य कुशल =कार्य में कुशल
  • कृषिप्रधान – कृषि में प्रधान
  • गृहप्रवेश   – गृह में प्रवेश
  • जलमग्न =जल में मग्न
  • दीनदयाल = दीनों पर दयाल
  • दानवीर = दान देने में वीर
  • धर्मवीर   – धर्म में वीर
  • पुरुषोत्तम  – पुरुषों में उत्तम
  • युधिष्ठिर    – युद्ध में स्थिर
  • रणधीर  – रण में धीर
  • लोकप्रिय   – लोक में प्रिय
  • वनवास =वन में वास
  • शरणागत = शरण में आगत
  • शोकमग्न  – शोक में मगन
  • सिरदर्द = सिर में दर्द
  • क्षणभंगुर  – क्षण में भंगुर


तत्पुरुष समास के उपभेद

  1. नञ् तत्पुरुष समास
  2. उपपद तत्पुरुष समास
  3. लुप्तपद तत्पुरुष समास

नञ तत्पुरुष समास :

जिस समास में पहला पद निषेधात्मक हो उसे नञ तत्पुरुष समास कहते हैं। जैसे -

नञ तत्पुरुष समास के उदाहरण :

  • असभ्य =न सभ्य
  • अनादि =न आदि
  • असंभव =न संभव
  • अनंत = न अंत

उपपद तत्पुरुष समास

ऐसा समास जिनका उत्तरपद भाषा में स्वतंत्र रूप से प्रयुक्त न होकर प्रत्यय के रूप में ही प्रयोग में लाया जाता है। जैसे- नभचर , कृतज्ञ , कृतघ्न , जलद , लकड़हारा इत्यादि ।

लुप्तपद तत्पुरुष समास

जब किसी समास में कोई कारक चिह्न अकेला लुप्त न होकर पूरे पद सहित लुप्त हो और तब उसका सामासिक पद बने तो वह लुप्तपद तत्पुरुष समास कहलाता है ।जैसे - 

  • दहीवड़ा – दही में डूबा हुआ वड़ा
  • ऊँटगाड़ी – ऊँट से चलने वाली गाड़ी
  • पवनचक्की – पवन से चलने वाली चक्की आदि ।

कर्मधारय समास

जिस समास का उत्तरपद प्रधान हो और पूर्वपद व उत्तरपद में विशेषण-विशेष्य अथवा उपमान-उपमेय का संबंध हो वह कर्मधारय समास कहलाता है। जैसे -भवसागर(भव [संसार] रूपी सागर);घनश्याम(घन [बादल] के समान श्याम [काला])

 कर्मधारय समास के उदाहरण

  • अधमरा – आधा है जो मरा
  • कमलनयन - कमल के समान नयन
  • कनकलता  – कनक की सी लता
  • क्रोधाग्नि  – क्रोध रूपी अग्नि
  • चरणकमल = कमल के समान चरण
  • चरणकमल   – चरण के समान कमल
  • चंद्रमुख - चंद्र जैसा मुख
  • दहीवड़ा - दही में डूबा वड़ा
  • दुर्जन   – दुष्ट है जो जन
  • देहलता = देह रूपी लता
  • नवयुवक = नव है जो युवक
  • नरसिंह  –  नर मे सिंह के समान
  • नीलकमल - नीला कमल
  • नीलकंठ   – नीला है जो कंठ
  • नीलगगन =नीला है जो गगन
  • परमानंद – परम है जो आनंद
  • प्राणप्रिय  – प्राणों से प्रिय
  • पीताम्बर =पीत है जो अम्बर
  • महात्मा =महान है जो आत्मा
  • महादेव = महान है जो देव
  • महावीर   – महान है जो  वीर
  • महाकाव्य  – महान काव्य
  • महापुरुष   – महान है जो पुरुष
  • मृगनयनी  – मृग के समान नयन
  • लालमणि = लाल है जो मणि
  • विद्यारत्न  – विद्या ही रत्न है
  • सज्जन - सत् (अच्छा) जन
  • श्यामसुंदर  – श्याम जो सुंदर है


कर्मधारय समास के भेद

  1. विशेषणपूर्वपद कर्मधारय समास
  2. विशेष्यपूर्वपद कर्मधारय समास
  3. विशेषणोंभयपद कर्मधारय समास
  4. विशेष्योभयपद कर्मधारय समास

विशेषण पूर्वपद कर्मधारय समास:

जहाँ पर पहला पद प्रधान होता है वहाँ पर विशेषणपूर्वपद कर्मधारय समास होता है। जैसे :-

  • नीलीगाय = नीलगाय
  • पीत अम्बर =पीताम्बर
  • प्रिय सखा = प्रियसखा

विशेष्य पूर्वपद कर्मधारय समास

इसमें पहला पद विशेष्य होता है और इस प्रकार के सामासिक पद ज्यादातर संस्कृत में मिलते हैं। जैसे :

  • कुमारी श्रमणा = कुमारश्रमणा

विशेषणोंभयपद कर्मधारय समास -

इसमें दोनों पद विशेषण होते हैं। जैसे :

  • नील – पीत 
  • सुनी – अनसुनी 
  • कहनी – अनकहनी 

विशेष्योभयपद कर्मधारय समास

इसमें दोनों पद विशेष्य होते है। जैसे :-

  • आमगाछ ,वायस-दम्पति।

कर्मधारय समास के उपभेद

  1. उपमानकर्मधारय समास
  2. उपमितकर्मधारय समास
  3. रूपककर्मधारय समास

उपमानकर्मधारय समास:

इसमें उपमानवाचक पद का उपमेयवाचक पद के साथ समास होता है। इस समास में दोनों शब्दों के बीच से ‘ इव’ या ‘जैसा’ अव्यय का लोप हो जाता है और दोनों पद , चूँकि एक ही कर्ता विभक्ति , वचन और लिंग के होते हैं , इसलिए समस्त पद कर्मधारय लक्ष्ण का होता है। उसे उपमानकर्मधारय समास कहते हैं। जैसे :-

  • विद्युत् जैसी चंचला = विद्युचंचला

उपमितकर्मधारय समास:

यह समास उपमानकर्मधारय का उल्टा होता है। इस समास में उपमेय पहला पद होता है और उपमान दूसरा पद होता है। उसे उपमितकर्मधारय समास कहते हैं। जैसे :

  • अधरपल्लव के समान = अधर – पल्लव ,
  • नर सिंह के समान = नरसिंह।

रूपककर्मधारय समास:

जहाँ पर एक का दूसरे पर आरोप होता है वहाँ पर रूपककर्मधारय समास होता है। जैसे :- मुख ही है चन्द्रमा = मुखचन्द्र।

द्विगु समास

द्विगु समास में पूर्वपद संख्यावाचक होता है और कभी-कभी उत्तरपद भी संख्यावाचक होता हुआ देखा जा सकता है। इस समास में प्रयुक्त संख्या किसी समूह को दर्शाती है किसी अर्थ को नहीं |इससे समूह और समाहार का बोध होता है। उसे द्विगु समास कहते हैं।

द्विगु समास के उदाहरण

  • दोपहर = दो पहरों का समाहार
  • तिरंगा  = तीन रंगों का समूह
  • तिमाही   = ३ माह का समाहार
  • त्रिवेणी = तीन वेणियों का समूह
  • त्रिकोण  = तीनों कोणों का समाहार
  • त्रिलोक = तीन लोकों का समाहार
  • त्रिनेत्र = तीन नेत्रों का समाहार
  • त्रिभुज = तीन भुजाओं का समाहार
  • त्रिभुवन  = तीन भवनों का समाहार
  • चतुर्वेद   – चार वेदों का समाहार
  • चौमासा =चार मासों का समूह
  • चौराहा    = चार राहों का समूह
  • चौगुनी = चार गुनी
  • पंचतन्त्र = पांच तंत्रों का समूह
  • पंचमढ़ी   – पांच मणियों का समूह
  • पंचमेवा  – पांच फलों का समाहार
  • पंसेरी = पांच सेरों का समूह
  • सप्तऋषि – सात ऋषियों का समूह
  • सप्ताह – सात दिनों का समूह
  • सप्तसिंधु  – सात सिंधुयों का समूह
  • अठन्नी - आठ आनों का समूह
  • अष्टधातु  – आठ धातुओं का समाहार
  • नवग्रह = नौ ग्रहों का समूह
  • नवग्रह – नौ ग्रहों का समाहार
  • नवरात्रि  – नवरात्रियों का समूह
  • शताब्दी = सौ अब्दों का समूह
  • सतसई = सात सौ पदों का समूह


द्विगु समास के भेद

  1. समाहारद्विगु समास
  2. उत्तरपदप्रधानद्विगु समास

समाहारद्विगु समास

समाहार का मतलब होता है समुदाय , इकट्ठा होना , समेटना उसे समाहारद्विगु समास कहते हैं। जैसे :

  • तीन लोकों का समाहार = त्रिलोक
  • पाँचों वटों का समाहार = पंचवटी
  • तीन भुवनों का समाहार =त्रिभुवन

उत्तरपद प्रधान द्विगु समास

उत्तरपदप्रधानद्विगु समास दो प्रकार के होते हैं। अ)- बेटा या फिर उत्पत्र के अर्थ में। जैसे :-

  • दो माँ का =दुमाता
  • दो सूतों के मेल का = दुसूती।
ब)- जहाँ पर सच में उत्तरपद पर जोर दिया जाता है। जैसे :

  • पांच प्रमाण = पंचप्रमाण
  • पांच हत्थड = पंचहत्थड


द्वन्द समास

जिस समास के दोनों पद प्रधान होते हैं तथा विग्रह करने पर ‘और’, अथवा, ‘या’, एवं योजक चिन्ह लगते हैं , वह द्वंद्व समास कहलाता है। जैसे- माता-पिता ,भाई-बहन, राजा-रानी, दु:ख-सुख, दिन-रात, राजा-प्रजा द्वन्द्व समास जिस समास के दोनों पद प्रधान होते हैं तथा विग्रह करने पर "और" अथवा "या" का प्रयोग होता है तो उसे द्वन्द्व समास कहते है। "और" का प्रयोग समान प्रकृति के पदों के मध्य तथा "या" का प्रयोग असमान (विपरीत) प्रकृति के पदों के मध्य किया जाता है। उदाहरण: माता-पिता = माता और पिता (समान प्रकृति) गाय-भैंस = गाय और भैंस (समान प्रकृति) धर्माधर्म = धर्म या अधर्म (विपरीत प्रकृति) सुरासुर = सुर या असुर (विपरीत प्रकृति)

इस समास में दोनों पद ही प्रधान होते हैं इसमें किसी भी पद का गौण नहीं होता है। ये दोनों पद एक-दूसरे पद के विलोम होते हैं लेकिन ये हमेशा नहीं होता है। इसका विग्रह करने पर और, अथवा, या, एवं का प्रयोग होता है उसे द्वंद्व समास कहते हैं।

द्वन्द समास उदाहरण

  • अन्न – जल  = अन्न और जल
  • अमीर-गरीब = अमीर और गरीब
  • अपना-पराया = अपना या पराया
  • आग – पानी  = आग और पानी
  • आगे –  पीछे   = आगे और पीछे
  • ऊंच – नीच   = ऊंच या नीच
  • गुण-दोष =गुण और दोष
  • छल – कपट  = छल और कपट
  • जलवायु = जल और वायु
  • ठंडा – गर्म    = ठंडा या गर्म
  • देश-विदेश = देश और विदेश
  • धन – दौलत   = धन और दौलत
  • नर-नारी =नर और नारी
  • नदी – नाले   = नदी और नाले
  • पाप-पुण्य = पाप और पुण्य
  • मार-पीट    = मारना और पीटना
  • राधा-कृष्ण = राधा और कृष्ण
  • राजा – प्रजा   = राजा और प्रजा
  • सुख – दुख  =  सुख और दुख


द्वन्द समास के भेद

  1. इतरेतर द्वंद्व समास
  2. समाहार द्वंद्व समास
  3. वैकल्पिक द्वंद्व समास

इतरेतर द्वंद्व समास

वो द्वंद्व जिसमें और शब्द से भी पद जुड़े होते हैं और अलग अस्तित्व रखते हों उसे इतरेतर द्वंद्व समास कहते हैं। इस समास से जो पद बनते हैं वो हमेशा बहुवचन में प्रयोग होते हैं क्योंकि वे दो या दो से अधिक पदों से मिलकर बने होते हैं।

इतरेतर द्वंद्व समास के उदाहरण

  • राम और कृष्ण = राम-कृष्ण
  • माँ और बाप = माँ-बाप
  • अमीर और गरीब = अमीर-गरीब
  • गाय और बैल =गाय-बैल
  • ऋषि और मुनि = ऋषि-मुनि
  • बेटा और बेटी =बेटा-बेटी

समाहार द्वन्द्व समास

समाहार का अर्थ होता है समूह। जब द्वंद्व समास के दोनों पद और समुच्चयबोधक से जुड़ा होने पर भी अलग-अलग अस्तिव नहीं रखकर समूह का बोध कराते हैं , तब वह समाहारद्वंद्व समास कहलाता है। इस समास में दो पदों के अलावा तीसरा पद भी छुपा होता है और अपने अर्थ का बोध अप्रत्यक्ष रूप से कराते हैं।

समाहार द्वन्द्व समास के उदाहरण

  • दालरोटी = दाल और रोटी
  • हाथपॉंव = हाथ और पॉंव
  • आहारनिंद्रा = आहार और निंद्रा

वैकल्पिक द्वंद्व समास

इस द्वंद्व समास में दो पदों के बीच में या,अथवा आदि विकल्पसूचक अव्यय छिपे होते हैं उसे वैकल्पिक द्वंद्व समास कहते हैं। इस समास में ज्यादा से ज्यादा दो विपरीतार्थक शब्दों का योग होता है। जैसे-

  • पाप-पुण्य =पाप या पुण्य
  • भला-बुरा =भला या बुरा
  • थोडा-बहुत =थोडा या बहुत


बहुव्रीहि समास

इस समास में कोई भी पद प्रधान नहीं होता। जब दो पद मिलकर तीसरा पद बनाते हैं तब वह तीसरा पद प्रधान होता है। इसका विग्रह करने पर "
वाला है, जो, जिसका, जिसकी, जिसके, वह" 
आदि आते हैं वह बहुब्रीहि समास कहलाता है।

बहुव्रीहि समास के उदाहरण

  • चक्रधर=चक्र को धारण करने वाला (विष्णु)

  • नीलकंठ =नीला है कंठ जिसका (शिव)
  • गजानन = गज का आनन है जिसका (गणेश)
  • गिरिधर   – गिरी को धारण करता है जो अर्थात कृष्ण
  • घनश्याम  – घन के समान है जो अर्थात श्री कृष्ण
  • चतुर्भुज = चार भुजाओं वाला (विष्णु)
  • चतुर्भुज – चार है भुजाएं जिसकीअर्थात विष्णु
  • चक्रपाणि  – चक्र है पाणी में जिसके अर्थात विष्णु
  • चतुरानन – चार है आनन  जिसके अर्थात ब्रह्मा
  • चंद्रमौली   – चंद्र है मौली पर जिसके अर्थात शिव
  • त्रिनेत्र =तीन नेत्र हैं जिसके (शिव)
  • त्रिलोचन  – तीन  है लोचन जिसके अर्थात शिव
  • दशानन = दश हैं आनन जिसके (रावण)
  • निशाचर    – निशा में विचरण करने वाला अर्थात राक्षस
  • नीलांबर  – नीला है जिसका अंबर अर्थात श्री कृष्णा
  • पीताम्बर = पीले हैं वस्त्र जिसके (कृष्ण)
  • पंकज  – पंक में जो पैदा हुआ हो अर्थात कमल
  • प्रधानमंत्री  – मंत्रियों ने जो प्रधान हो अर्थात प्रधानमंत्री
  • मृत्युंजय – मृत्यु को जीतने वाला अर्थात शंकर
  • लंबोदर  – लंबा है उद जिसका अर्थात गणेश
  • लम्बोदर = लम्बा है उदर जिसका (गणेश)
  • विषधर  – विष को धारण करने वाला अर्थात सर्प
  • वीणापाणी = वीणा है जिसके हाथ में (सरस्वती)
  • वीणापाणि  – वीणा है कर में जिसके अर्थात सरस्वती
  • स्वेताम्बर = श्वेत है जिसके अंबर (वस्त्र) अर्थात् सरस्वती जी
  • सुलोचना = सुंदर है लोचन जिसके अर्थात् मेघनाद की पत्नी

नीलकंठ – नीला है कंठ जिसका अर्थात शिव इस समास के पदों में कोई भी पद प्रधान नहीं है , बल्कि पूरा पद किसी अन्य पद का विशेषण होता है।


बहुव्रीहि समास के प्रकार/भेद

  1. समानाधिकरण बहुब्रीहि समास
  2. व्यधिकरण बहुब्रीहि समास
  3. तुल्ययोग बहुब्रीहि समास
  4. व्यतिहार बहुब्रीहि समास
  5. प्रादी बहुब्रीहि समास

समानाधिकरण बहुब्रीहि समास

इसमें सभी पद कर्ता कारक की विभक्ति के होते हैं लेकिन समस्त पद के द्वारा जो अन्य उक्त होता है ,वो कर्म, करण, सम्प्रदान, अपादान, सम्बन्ध, अधिकरण आदि विभक्तियों में भी उक्त हो जाता है उसे समानाधिकरण बहुब्रीहि समास कहते हैं। जैसे-

  • प्राप्त है उदक जिसको = प्रप्तोद्क
  • जीती गई इन्द्रियां हैं जिसके द्वारा = जितेंद्रियाँ
  • दत्त है भोजन जिसके लिए =दत्तभोजन
  • निर्गत है धन जिससे = निर्धन
  • नेक है नाम जिसका = नेकनाम
  • सात है खण्ड जिसमें = सतखंडा

व्यधिकरण बहुब्रीहि समास 

समानाधिकरण बहुब्रीहि समास में दोनों पद कर्ता कारक की विभक्ति के होते हैं लेकिन यहाँ पहला पद तो कर्ता कारक की विभक्ति का होता है लेकिन बाद वाला पद सम्बन्ध या फिर अधिकरण कारक का होता है उसे व्यधिकरण बहुब्रीहि समास कहते हैं। जैसे-

  • शूल है पाणी में जिसके = शूलपाणी
  • वीणा है पाणी में जिसके = वीणापाणी

तुल्ययोग बहुब्रीहि समास

जिसमें पहला पद ‘सह’ होता है वह तुल्ययोग बहुब्रीहि समास कहलाता है। इसे सहबहुब्रीहि समास भी कहती हैं। सह का अर्थ होता है साथ और समास होने की वजह से सह के स्थान पर केवल स रह जाता है। इस समास में इस बात पर ध्यान दिया जाता है की विग्रह करते समय जो सह दूसरा वाला शब्द प्रतीत हो वो समास में पहला हो जाता है। जैसे -

  • जो बल के साथ है = सबल
  • जो देह के साथ है = सदेह
  • जो परिवार के साथ है = सपरिवार

व्यतिहार बहुब्रीहि समास

जिससे घात या प्रतिघात की सुचना मिले उसे व्यतिहार बहुब्रीहि समास कहते हैं। इस समास में यह प्रतीत होता है की ‘ इस चीज से और उस चीज से लड़ाई हुई। जैसे -

  • मुक्के-मुक्के से जो लड़ाई हुई = मुक्का-मुक्की
  • बातों-बातों से जो लड़ाई हुई = बाताबाती

प्रादी बहुब्रीहि समास

जिस बहुब्रीहि समास पूर्वपद उपसर्ग हो वह प्रादी बहुब्रीहि समास कहलाता है। जैसे-

  • नहीं है रहम जिसमें = बेरहम
  • नहीं है जन जहाँ = निर्जन

अन्य विशेष समास और उनके उदाहरण-

संयोगमूलक समास

संयोगमूलक समास को संज्ञा समास भी कहते हैं। इस समास में दोनों पद संज्ञा होते हैं अथार्त इसमें दो संज्ञाओं का संयोग होता है। जैसे :
  • माँ-बाप, भाई-बहन, दिन-रात, माता-पिता।

आश्रयमूलक समास

आश्रयमूलक समास को विशेषण समास भी कहा जाता है। यह प्राय कर्मधारय समास होता है। इस समास में प्रथम पद विशेषण होता है और दूसरा पद का अर्थ बलवान होता है। यह विशेषण-विशेष्य, विशेष्य-विशेषण, विशेषण,विशेष्य आदि पदों द्वारा सम्पन्न होता है। जैसे -

  • कच्चाकेला , शीशमहल , घनस्याम, लाल-पीला, मौलवीसाहब , राजबहादुर।

वर्णनमूलक समास

इसे वर्णनमूलक समास भी कहते हैं। वर्णनमूलक समास के अंतर्गत बहुब्रीहि और अव्ययीभाव समास का निर्माण होता है। इस समास में पहला पद अव्यय होता है और दूसरा पद संज्ञा। उसे वर्णनमूलक समास कहते हैं। जैसे-

  • यथाशक्ति , प्रतिमास , घड़ी-घड़ी, प्रत्येक, भरपेट, यथासाध्य। 

कर्मधारय समास और बहुब्रीहि समास में अंतर

समास के कुछ उदहारण है जो कर्मधारय और बहुब्रीहि समास दोनों में समान रूप से पाए जाते हैं ,इन दोनों में अंतर होता है। कर्मधारय समास में एक पद विशेषण या उपमान होता है और दूसरा पद विशेष्य या उपमेय होता है। इसमें शब्दार्थ प्रधान होता है। कर्मधारय समास में दूसरा पद प्रधान होता है तथा पहला पद विशेष्य के विशेषण का कार्य करता है। जैसे - नीलकंठ = नीला कंठ
 
बहुब्रीहि समास में दो पद मिलकर तीसरे पद की ओर संकेत करते हैं इसमें तीसरा पद प्रधान होता है। जैसे-नीलकंठ = नील + कंठ = शिव

द्विगु समास और बहुब्रीहि समास में अंतर

द्विगु समास में पहला पद संख्यावाचक विशेषण होता है और दूसरा पद विशेष्य होता है जबकि बहुब्रीहि समास में समस्त पद ही विशेषण का कार्य करता है। जैसे -

  • चतुर्भुज -चार भुजाओं का समूह
  • चतुर्भुज -चार हैं भुजाएं जिसकी

द्विगु और कर्मधारय समास में अंतर

द्विगु का पहला पद हमेशा संख्यावाचक विशेषण होता है जो दूसरे पद की गिनती बताता है जबकि कर्मधारय का एक पद विशेषण होने पर भी संख्यावाचक कभी नहीं होता है।
द्विगु का पहला पद्द ही विशेषण बन कर प्रयोग में आता है जबकि कर्मधारय में कोई भी पद दूसरे पद का विशेषण हो सकता है। जैसे -

  • नवरात्र – नौ रात्रों का समूह
  • रक्तोत्पल – रक्त है जो उत्पल

समास और संधि में अंतर-

संधि का शाब्दिक अर्थ होता है मेल। संधि में उच्चारण के नियमों का विशेष महत्व होता है। इसमें दो वर्ण होते हैं इसमें कहीं पर एक तो कहीं पर दोनों वर्णों में परिवर्तन हो जाता है और कहीं पर तीसरा वर्ण भी आ जाता है। संधि किये हुए शब्दों को तोड़ने की क्रिया विच्छेद कहलाती है। संधि में जिन शब्दों का योग होता है उनका मूल अर्थ नहीं बदलता। जैसे - पुस्तक +आलय = पुस्तकालय।
समास का शाब्दिक अर्थ होता है संक्षेप। समास में वर्णों के स्थान पर पद का महत्व होता है। इसमें दो या दो से अधिक पद मिलकर एक समस्त पद बनाते हैं और इनके बीच से विभक्तियों का लोप हो जाता है। समस्त पदों को तोडने की प्रक्रिया को विग्रह कहा जाता है। समास में बने हुए शब्दों के मूल अर्थ को परिवर्तित किया भी जा सकता है और परिवर्तित नहीं भी किया जा सकता है। जैसे :- विषधर = विष को धारण करने वाला अथार्त शिव।